भारत के हर क्षेत्र में अपने विशिष्ट व्यंजन है ,पर भारतीय व्यंजन में विविधता में एकता यह है की दूसरे किसी क्षेत्र में यही व्यंजन कुछ बदलाव या समरूपता के साथ उपलब्ध है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में कृषि की भी समरूपता को ही प्रदर्शित करता है। ऐसे ही कुछ व्यंजनों के बारे में हम अगले कुछ दिनों में जानेंगे और उनके स्वाद की समीक्षा करेंगे -------
दक्षिण भारतीय डोसा बनाम उत्तर भारतीय चीला
डोसा दक्षिण भारत से अब एक अन्तराष्ट्रीय व्यंजन बन चूका है , साथ में उसके दक्षिण भारत में भी कई रूप है जैसे --मसाला डोसा,अतुकुला डोसा ,मैसूर डोसा , क्रमशः इत्यादि ----इनके नाम व् कुछ चित्र इस प्रकार रहे ----
दक्षिण भारतीय डोसा बनाम उत्तर भारतीय चीला
डोसा दक्षिण भारत से अब एक अन्तराष्ट्रीय व्यंजन बन चूका है , साथ में उसके दक्षिण भारत में भी कई रूप है जैसे --मसाला डोसा,अतुकुला डोसा ,मैसूर डोसा , क्रमशः इत्यादि ----इनके नाम व् कुछ चित्र इस प्रकार रहे ----
बात अब उत्तर भारतीय चीलों की जो स्थानीय अनाजों की उपलब्धता के अनुसार जैसे दाल चावल या गेहू के बनते है ,ये मीठे व् नमकीन दोनों हो सकते है ,एक विशिस्ट अंतर यह है की इनमे भरावन नहीं होता कुछ चित्र इस प्रकार रहे ---
चावल का चीला
आटे का चीला
दाल /बेसन का चीला
१ --वैसे तो डोसे का स्वाद व् प्रसिद्धि में कोई जवाब नहीं ,पर नमकीन वो मीठा दोनों होने के कारन चीला स्वाद में विविधता रखता है।
२-- आकर्षक दिखने की बात करे तो डोसा वाकई बाज़ी मारता है।
३ -- कम सामग्री में तैयार हो जाना चीले की विशेषता है।
४- -चीले में वसा की मात्रा कम होती है